तुमसे ही नाराज़ हूँ
तुम्हारी भक्ति का
मैं एक अपवाद हूँ !
राह दिखाने का काम तुम्हारा
चलते जाने का मेरा
मंज़िल ना मिली तो
तो सिर्फ मैं क्यों उदास हूँ ?
रहनुमा होने के साथ
रहबरी का वादा भी तो था
हर कामयाबी हर नाकामी में
तुम्हारा हिस्सा आधा भी तो था !
क्या कभी मन नहीं करता कि
कुछ बोल दो ?
अप्रत्यक्ष ही सही
दो मौजूदगी का एहसास तो !
सब देख रहे हो, या सुन नहीं सकते
सुन रहे हो, कुछ कर नहीं सकते ?
या बस आँखें खोल कर, पथराई सी मुस्कान लिए
बुत बन कर सब घटने के साक्ष्य बने हो !
अगर मुझ में ही बसते हो
तो मेरा दर्द भी तो जानते होगे ?
खून भले मेरा होता है
तीस का एहसास तो समझते होगे ?
या तो बस मनोहर कहानी हो तुम
ना हाइड्रोजन ना ऑक्सीजन
ना ही पानी हो तुम
इंसान के अकेले लड़ने की निशानी हो तुम !
ये धर्म का ज्ञान नहीं है
ये आध्यात्म की बात है
ये खुद से खुदा का
मात्र एक संवाद है !
तुम्हारी भक्ति एक अपवाद है !